
मधुशाला के बादल ना बरसते है, ना गरजते है
बस चलते है, झलकते है
डुल्ते है बस किसी उत्सव के उपहास में
किसी की आँखो की प्यास में
किसी सुनने वाले की आस में
किसी शायर के अल्फ़ाज़ में
मधुशाला के बादल ना बरसते है, ना गरजते है
बस चलते है, झलकते है
रुकते है बस किसी शराबी की किवाड़ पे
किसी शेर की दहाड़ पे
किसी खिलती बहार पे
किसी आशिक़ की मज़ार पे
मधुशाला के बादल ना बरसते है, ना गरजते है
बस चलते है, झलकते है
खुलते है बस कुछ चन चेहरों पे
कुछ कूदती लहरो पे
कुछ लटों के पेहरों पे
कुछ आँखो के केहरों पे
मधुशाला के बादल ना बरसते है, ना गरजते है
बस चलते है, झलकते है
बोलते है बस किसी अपने की बेवफ़ाई पे
किसी की हराम की कमाई पे
किसी की फ़ीकी मिठाई पे
किसी की झूठी गवाही पे
मधुशाला के बादल ना बरसते है, ना गरजते है….
-मंच
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